माँ के 100वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनका आशीर्वाद लेने गुजरात के गांधीनगर स्थित उनके आवास पहुंचे। पीएम मोदी द्वारा अपनी मां से मुलाकात करते, उनके पैर धोते हुए और अपनी मां का मुंह मीठा कराते हुए कई तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे रहे हैं। लोग इस पर अपनी प्रतिकिर्या भी दे रहे हैं।
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भारत में आम बोलचाल की भाषा में ‘हिटलर’ शब्द ख़ूब इस्तेमाल होता है । ख़ास तौर से एक विशेषण के तौर पर । यदि कोई यहाँ अपनी ज़िद पर अड़ना अपनी आदत बना लेता है और अपनी राय को ही आख़िरी फ़ैसला समझता है , तो हम इसे ‘हिटलर’ के विशेषण से नवाज़ देते हैं। भारत की राजनीति में भी यदा- कदा नेता एक दूसरे को ‘हिटलर’ कहते रहे हैं। क्या यह इतनी सामान्य बात है कि बातचीत में ही सही ,किसी को हिटलर कह दिया जाए ।इसलिए मैने सोचा कि हिटलर के उन निजी पक्षों पर लिखता हूँ ,जो आम जनता में ज़्यादा चर्चित नहीं हैं । फिर आप ख़ुद तय कीजिएगा कि किसे हिटलर कहना है किसे नहीं ।
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कैसा हो यदि एक रोज़ आधी रात के समय आपको एक फ़ोन आए और आप से कहा जाए, चलिए जनाब सुबह आपको प्रधानमंत्री पद की शपथ लेनी है । कुछ ऐसा ही हुआ श्री आई के गुजराल यानी इन्द्र कुमार गुजराल के साथ और वह बने देश के बारहवें प्रधानमंत्री। वर्ष 1997 में अचानक रात 2 बजे गुजराल साहब को पता चला की वह देश के अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं। हालांकि उनका कार्यकाल एक वर्ष का ही रहा।
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भारत का मूल स्वरूप है विविधता में एकता। सैकड़ों साल की गुलामी के बाद जब देश आज़ाद हुआ तो विदेशियों ने कहा कि हिंदुस्तान में अगर लोकतंत्र स्थापित होता है तो वह मात्र एक अपवाद होगा। उनका तर्क था कि भारत में इतनी विविधता है कि यहां लोकतंत्र के बचाए रखना बड़ी चुनौती साबित होगा। लेकिन देश ने उनकी इस बात को 1947 से अबतक गलत साबित किया है।
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अगर आप युवा हैं और राजनीति से निराश हैं तो ये ब्लॉग आपके लिए है । यूथ और पॉलिटिक्स । दोनों ही कमाल के शब्द हैं और एक दूसरे के सहयोगी भी , लेकिन हैरानी की बात यह है कि दोनों का इस्तेमाल एक दूसरे के ख़िलाफ़ किया गया है । राजनीति का युवाओं के विरुद्ध । युवाओं का राजनीति के ख़िलाफ़ । कैसे ? आज युवाओं का लगता है कि राजनीति विरासती लोगों , अमीरों और अपराधियों का काम है ।
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In the recent past, various attempts have been made to promote the idea of a ‘singular’ national identity for the citizens of India by the ruling party. The emphasis on measures such as ‘one nation, one language’, ‘single’ national test for admissions to central universities, ‘one nation, one health card’ and so on testify to this .
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चाणक्य की नीति, आर्यभट्ट का आविष्कार
महावीर की तपस्या, बुद्ध का अवतार
सीता की भूमि, विद्यापति का संसार
जनक की नगरी, माँ गंगा का श्रंगार
चंद्रगुप्त का साहस, अशोक की तलवार
बिंदुसार का शासन, मगध का आकार
दिनकर की कविता, रेणु का सार
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किसी भी धर्म की परिभाषा उसके मानने वालों पर निर्भर करती है। धर्म को कोई कैसे और कितना साथ लेकर चलता है या किसी के जीवन में उसका कितना महत्व है, यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है।
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लेखक आशुतोष तिवारी कमाल है । भारत की राजनीति में इतनी दिलचस्प हलचलें हैं ,जो चौंकाने का मौक़ा कभी नहीं छोड़ती ।हम हार्दिक पटेल की भाजपा में शामिल होने की ख़बरों से उबर ही पाए थे कि पता चला मोहन भागवत ने ज्ञानवापी विवाद पर एक ‘अलग कहा का जा सकने’ वाला बयान दे दिया है । उस बयान […]
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Written By Bhavya Bhardwaj India’s parliamentary democracy stands at a tough crossroads today. The ever-growing strength of the ruling party both in electoral numbers and in the larger narrative shaping the country, without alternative voices finding much traction amongst the masses, signals a dangerous trend in the democratic history of India. The last decade has […]
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