मोहन भागवत ने ज्ञानवापी विवाद पर ऐसा बयान क्यों दिया ?

लेखक आशुतोष तिवारी

कमाल है । भारत की राजनीति में इतनी दिलचस्प हलचलें हैं ,जो चौंकाने का मौक़ा कभी नहीं  छोड़ती ।हम  हार्दिक पटेल की भाजपा में शामिल होने की ख़बरों से उबर  ही पाए थे कि पता चला मोहन भागवत ने ज्ञानवापी  विवाद पर एक ‘अलग कहा का जा सकने’ वाला बयान दे दिया है । उस बयान के तमाम निहितार्थ लगाए जा रहे हैं । इस ब्लॉग में  ‘मोहन भागवत के बयान’  सहित यह समझने की कोशिश की गयी है  कि ऐसा बयान इस मौक़े पर  क्यों दिया गया है । 

RSS प्रमुख के बयान से हलचल 

शहर था नागपुर । मौक़ा था संघ शिक्षा वर्ग के तृतीय वर्ष  के समापन समारोह  का । वक़्ता थे संघ प्रमुख मोहन भागवत । मंच पर आकर बोले तो भाषण वायरल हो गया । उन्होंने कहा कि ‘ हम हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश क्यों कर रहे हैं ।’  

साथ ही उन्होंने एक बड़ी घोषणा की – “एक राम जन्मभूमि का आंदोलन था जिसमें हम अपनी प्रकृति के विरुद्ध किसी ऐतिहासिक कारण से उस समय सम्मिलित हुए, हमने उस काम को पूरा किया. अब हमको कोई आंदोलन करना नहीं है. लेकिन अब भविष्य में संघ किसी मंदिर आंदोलन में नहीं शामिल होने वाला है ।”

राजनीति में हर बयान का वक़्त अहम होता है ।  उनका बयान ऐसे वक्त में आया है जब काशी, मथुरा और लखनऊ जैसी जगहों पर मस्जिद में मंदिर होने का दावा ठोका जा रहा है, तब यह बात ग़ौर  करने वाली है । 

इमेज का संकट एक वजह हो सकता है ।

पिछले कुछ सालों में  पूरे देश में  500  से ज़्यादा कथित हिंदुत्व वादी  संगठन बन चुके हैं । अगुआई के नाम पर न सिर्फ़ गड़े मुद्दों को उखाड़ा जा रहा है बल्कि कई हिंसक घटनाएँ  हमें पूरे देश में देखने को मिल रही हैं । अभी हाल फ़िलहाल में महाराष्ट्र में हम राज ठाकरे संचालित ‘नया एपिसोड’ देख रहे हैं । पूरे देश में न सिर्फ़ माब लिंचिंग की कई घटनाएँ हुई हैं बल्कि आए दिन मार -पीट की  ऐसी वारदातें सामने आई है ,जिसे आम मध्य वर्गीय  पसंद नही करते । ताजमहल मसले  पर जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने याचिका कर्ता को लताड़ लगाते हुए इतिहास पढ़ने की नसीहत दी ,  वह इस स्पेस की राजनीति के लिए  हास्यास्पद था ।

संघ की कोई यूनिक एडवाइज़री भी नही है ,जिससे यह संगठन चलते हों ,भले ही प्रेरणा संघ से  ही पाते हैं । इसलिए संघ का डर है कि लोग कई दफ़ा जोड़ कर देखने लगते हैं ।  संघ इस बात को समझता है कि भारत का बड़ा मानस मौन है , जो भले ही इन वारदातों के ख़िलाफ़ सीधे सीधे बोलने के लिए सड़क पर न आता हो ,पर उसे भाजपा के काम पसंद हो सकते है , राम मंदिर से सहानुभूति हो सकती है , लेकिन इस तरह की आए -दिन हिंसक वारदातें , बिन सिर पैर के हास्यास्पद दावे पसंद नही है । भारत का एक बड़ा वर्ग मध्य वर्ग से संघ से सीधा जुड़ा हुआ है और उसी नौकरी पेशा कोर मानस को रोज़ाना की चिल्ल -पों से कोई सहानुभूति नही है ।इस वर्ग के दिमाग़ में हल्की इमेज से बचना भी इस बयान की वजह हो सकता है । 

भागवत की बात और सावरकर की विचारधारा 

इस बात के ख़ास मतलब समझिए । सावरकर  की विचारधारा साफ़ साफ़ कहती है कि मुस्लिमों या ईसाइयों की पुण्यभूमि भले ही भारत न  हो यानी उनका धर्म भले ही भारत के बाहर से आया हो ,लेकिन उनकी पितृ भूमि भारत है , यानी उनका जन्म भारत में हुआ है । हमें उनमें  यह पवित्र विश्वास जगाना है कि वह  अपनी अपनी धार्मिक परपराओं का पालन करते हुए भी सावरकर की   भू – सांस्कृतिक  परिकल्पना (जियो -कल्चरल थ्योरी ) हिंदुत्व से जुड़ कर ख़ुद को देख  सकते हैं ।  

अब आप भागवत का बयान पढ़िए । उनके अनुसार ‘हिंदुओं को यह समझना चाहिए कि मुसलमान उनके अपने पूर्वजों के वंशज हैं और ”खून के रिश्ते से उनके भाई हैं। अगर वे वापस आना चाहते हैं तो उनका खुली बाहों से स्वागत करेंगे। अगर वे वापस नहीं आना चाहते, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, पहले ही हमारे 33 करोड़ देवी-देवता हैं, कुछ और जुड़ जाएंगे.। हर कोई अपने धर्म का पालन कर रहा है।”- क्या आप कुछ समझ पा रहे हैं । यह वही बात है जो कुछ -कुछ सावरकर ऊपर कहना चाहते थे ।

क्या संघ व भाजपा के बीच सब कुछ ठीक है । ?

ज्ञानवापी विवाद पर भले ही किसी शीर्ष स्तर के नेता ने विवादित बयान न दिया हो लेकिन कन्नौज सांसद सुब्रत पाठक और इसी तरह के बयानों के लिए मशहूर विनय कटियार ने ज़रूर अपना बयान दिया है ।इस बयान से सीधे सीधे यह अनुमान लगाना तो ठीक नही कि संघ और भाजपा के कुछ बिगड़ा हुआ है लेकिन हाँ , भाजपा के तमाम कार्यकर्ता और निचली पाँत के कई नेता दबी -खुली ज़ुबान से ज्ञानवापी, ताजमहल या अन्य  कई जगहों पर ऐसे ही दावे ठोंकते रहे है । इससे उन्हें ज़रूर निराशा मिलेगी । 

हर कोई इस धर्म  की राजनीति में अपनी जगह चमकाने में लगा है जबकि असली स्पेस की दावेदारी कथित रूप से संघ करता आया  है ।संघ न सिर्फ बीजेपी का ‘भाग्यविधाता’ है बल्कि तमाम  हिंदू संगठनों की जननी होने का दावा भी वही करता है ।इसलिये ऐसा हो नही सकता कि भगवा ध्वज को अति सम्मान देने वाले और उसके प्रति अपनी अगाध आस्था,श्रद्धा प्रकट करने वाले लोग संघ प्रमुख की कही इतनी महत्वपूर्ण बात को किसी गली-मुहल्ले के नेता की तरह हवा में उड़ा देने की जुर्रत कर सकें । अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मोहनभगवत की बात का इस जमात  पर कितना असर पड़ता है ।  

The views expressed in this article are those of the author and do not represent the stand of Youth in Politics.

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