भारत और यूरोप । यह केवल दो अलग -अलग भौगोलिक इकाई नहीं हैं । हमारे सोचने के बुनियादी चिंतन में उतने ही फ़र्क़ हैं जितने भूगोल में । दोनो अलग – अलग तरह की सभ्यताएँ हैं पर दोनो के कुछ केंद्रबिंदु हैं जो कहीं तो इन्हें एक करते हैं और कहीं पराए से हो जाते हैं । इस ब्लॉग में कुछ उन बिंदुओ पर बात करते हैं जो दोनो संस्कृतियों के अलग -अलग आयामों को हमारे सामने रखती है ।
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14 सितंबर को कैबिनेट ने एक फ़ैसला लिया । सरकार ने यूपी , छत्तीसगढ़ , हिमाचल , कर्नाटक और तमिलनाडू की क़रीब डेढ़ दर्जन समुदायों को एसटी वर्ग का दर्जा दे दिया है । लम्बे समय से यह जन जातियाँ अपने स्टेटस को ले कर माँग कर रही थीं । आइए इस ब्लॉग के ज़रिए समझते हैं कि एसटी लिस्ट में शामिल होने या बाहर होने की क्या प्रक्रिया है।
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आज हिंदी दिवस है । 14 सितम्बर । भारत में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा । हर भाषा की अपनी विशेषताएँ होती हैं , कुछ ख़ासियतें , जो उसे दूसरों से अलग करती हैं । यह ख़ासियतें उस भाषा की वजूद बनाती हैं ।
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कुछ घटनाएँ हमें चौंका देती हैं । कुछ ऐसी होती हैं , जिनकी स्मृति हमें सोने तक नही देती । राजस्थान से कुछ दिनों पहले ऐसी ही एक ख़बर आई । 9 साल के दलित बच्चे की शिक्षक की पिटाई से मौत हो गई । घरवालों ने आरोप लगाया कि पानी का मटका छूने पर टीचर ने बच्चे की बेरहमी से पीटा था । 23 दिन बाद इस बच्चे की मौत हो गई । हम जिस समाज में हैं , वहाँ सबसे ख़राब बात ये हो रही है कि हम इन ख़बरों को ले कर सहज होते जा रहे हैं ।
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एक बड़ी कम्पनी है उबर । मोबाइल एप के ज़रिए आम लोगों का टैक्सी यानी कैब मुहैया कराने का काम है इसका । भारत सहित दुनिया के कई देशों में इसके कारोबार हैं ।देखा गया है कि बड़ी कम्पनियाँ कई दफ़ा बड़ी ग़लतियाँ करती हैं और अपनी बड़े होने की ज़िम्मेदारी से भागती रहती है । उबर ने भी यही किया है । ‘उबर फ़ाइल्स’ नाम से एक रिपोर्ट आई है । इस रिपोर्ट ने कई हैरान करने वाले सवाल खड़े किए हैं ।
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28 फरवरी 2002 का दिन । गुजरात में साम्प्रदायिक दंगे हो रहे थे । बिलकिस बानो 5 महीने की गर्भवती थीं । दंगाइयों से बचने के लिए वह अपने परिवार के 15 लोगों के साथ एक खेत में जा छिपीं । 3 मार्च एक बुरा दिन था । उस दिन दंगाइयों से बिलकिस बच नहीं पायीं । उनके परिवार के 7 लोगों की उनके सामने क्रूर हत्या की गयी, जिसमें बच्चे भी शामिल थे । बिलिकिस के साथ कई लोगों ने गैंग रेप किया । क्या आप जानते हैं ? इस पैशाचिक अपराध को अंजाम देने वाले आज जेल के बाहर आज़ाद घूम रहे हैं । गुजरात सरकार ने उन्हें 15 अगस्त के दिन रिहा कर दिया है ।
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कमाल है ! भारत की राजनीति आपको चौंकाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ती । ख़बर है कि बिहार में महागठबंधन की सरकार एक बार फिर से बन गई है ।नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया है और आठवीं बार सीएम पद की शपथ भी ले ली है । सरकार बदलने की इस पूरी क़वायद पर तमाम विश्लेषण हो रहे हैं पर हम आपके लिए लाए हैं – चुनावी विश्लेषक – योगेन्द्र यादव की सुपर एनालिसिस ,वो भी आपकी भाषा में ।
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खबर आई कि लोकसभा में जनसंख्या बिल पेश होने वाला है । इस पर भारत में लम्बी बहस हुई है । अगर आप ग़ौर से देखेंगे तो भारत में यह बहस दो तरह के दबावों की वजह से चलती है । पहला दबाव भारत के धुर हिंदुत्ववादी खेमे का है ,जिसे लगता है कि ‘मुसलमान सुनुयोजित तरीक़े से भारत में जनसांख्यकीय बदलाव करना चाहते हैं । दूसरा दबाव , उदारवादियों का है , जिन्हें उन बहुसंख्यक सांप्रदायिकों से शिकायत रहती है कि ये लोग ‘दस बच्चे’ पैदा करने की अवैज्ञानिक वकालत ‘रिएक्शन’ ’ में क्यों कर रहे हैं । एक तीसरा खेमा है , जो संख्या में ज़रूर छोटा है ,पर उसकी चिंता प्रकृति से सीमित संख्या में मिले संसाधनों से जुड़ी है । ज़्यादा संख्या में बढ़ते हुए लोग नेचर का इतना दोहन करेंगे कि संसाधनो की कमी के नए संकट पैदा हो जाएँगे । इसका परिणाम होगा – निचला जीवन स्तर ,युद्ध और भुखमरी- यह तीसरे खेमे की चिंता है ।
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भारतीय जीवन क्या सच में अब निराश नहीं है? धूप में घुटते हुए, रोज़मर्रा के जीवन को ढोते हुए, एक दैनिक क्रम के दोहराव में,क्याकभी नहीं लगता कि हमने कुछ मिस कर दिया है। हज़ार तरक़्क़ी के बावजूद ड्रग्स में मुक्ति खोजती आँखे क्या विवश नहीं हैं? क्या कोईध्येय है जो जीवन की इन निराशाओं से उबार सकता था? हमें कुछ होने के एक सुकून भरे स्वप्न में जीवित रख सकता था? क्यों हमारेख़्वाब इतने मटमैले हैं कि उनकी मोक्ष सिर्फ़ चेतना से दूर होती शामों में , ख़ुद को भुलाकर हम खोजते रहते हैं?
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‘जब तक दार्शनिक , राजा नहीं बन जाते या राजा , दार्शनिकों में नहीं बदल जाते तब तक दुनिया से बुराइयां मिटना सम्भव नहीं है |’ यह यूनानी दार्शनिक प्लेटो का मानना था । प्लेटो राजनीतिक दर्शन की दुनिया के गॉडफादर हैं – दुनिया के पहले राजनीतिक दार्शनिक, जिनका लिखा हुआ हम पढ़ सकते हैं । एक ऐसा चिंतक जिसका मानना था कि साम्यवाद सिर्फ संपत्ति का ही नहीं पत्नियों का भी होना चाहिये । हालाँकि उनके इस सिद्धांत की सबसे जबरदस्त आलोचना उनके चेले अरस्तु ने ही की है। जानिये , प्लेटो के उन पांच सिद्धांतों के बारे में जिनकी चर्चा सिर्फ दर्शनशास्त्र पढने वालों के बीच सिमट कर रह जाती है ।
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