Day: July 22, 2022

Communism in India: Destined for Failure?

What image comes to your mind when you think of an Indian Communist? Most of you might visualise a man at least in his sixties, in a white kurta, wearing glasses with an unconvincing smile on his face. He seems to be giving a speech in front of an oldish microphone, shouting ideological jargon- words like “revolution” and “cholbe na” being commonly uttered.

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भारत में जनसंख्या को ले कर चलने वाली बहस यूरोप की ग़ुलाम क्यों है ?

खबर आई कि लोकसभा में जनसंख्या बिल पेश होने वाला है । इस पर भारत में लम्बी बहस हुई है । अगर आप ग़ौर से देखेंगे तो भारत में यह बहस दो तरह के दबावों की वजह से चलती है । पहला दबाव भारत के धुर हिंदुत्ववादी खेमे का है ,जिसे लगता है कि ‘मुसलमान सुनुयोजित तरीक़े से भारत में जनसांख्यकीय बदलाव करना चाहते हैं । दूसरा दबाव , उदारवादियों का है , जिन्हें उन बहुसंख्यक सांप्रदायिकों से शिकायत रहती है कि ये लोग ‘दस बच्चे’ पैदा करने की अवैज्ञानिक वकालत ‘रिएक्शन’ ’ में क्यों कर रहे हैं । एक तीसरा खेमा है , जो संख्या में ज़रूर छोटा है ,पर उसकी चिंता प्रकृति से सीमित संख्या में मिले संसाधनों से जुड़ी है । ज़्यादा संख्या में बढ़ते हुए लोग नेचर का इतना दोहन करेंगे कि संसाधनो की कमी के नए संकट पैदा हो जाएँगे । इसका परिणाम होगा – निचला जीवन स्तर ,युद्ध और भुखमरी- यह तीसरे खेमे की चिंता है ।

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सालाबेग- युद्ध से भक्ति तक

लेखक – अदनान भक्ति को सर्वोपरि माना जाता है । यह भावना जाति, लिंग, आयु, धर्म की मानव निर्मित सभी सीमाओं को पार कर जाती है। आज हम आपके लिए भगवान जगन्नाथ के एक महान भक्त की कहानी बताना चाहते हैं । वह भले ही अलग धर्म में पैदा हुए थे लेकिन उनकी भावनाओं और […]

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हम सब इतने आधे -अधूरे और बेचैन क्यों हैं?

भारतीय जीवन क्या सच में अब निराश नहीं है? धूप में घुटते हुए, रोज़मर्रा के जीवन को ढोते हुए, एक दैनिक क्रम के दोहराव में,क्याकभी नहीं लगता कि हमने कुछ मिस कर दिया है। हज़ार तरक़्क़ी के बावजूद ड्रग्स में मुक्ति खोजती आँखे क्या विवश नहीं हैं? क्या कोईध्येय है जो जीवन की इन निराशाओं से उबार सकता था? हमें कुछ होने के एक सुकून भरे स्वप्न में जीवित रख सकता था? क्यों हमारेख़्वाब इतने मटमैले हैं कि उनकी मोक्ष सिर्फ़ चेतना से दूर होती शामों में , ख़ुद को भुलाकर हम खोजते रहते हैं?

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