क्या भाजपा 2024 में बहुमत के आँकड़े से दूर रहेगी ?

लेखक आशुतोष तिवारी

कमाल है ! भारत की राजनीति आपको चौंकाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ती । ख़बर है कि बिहार में महागठबंधन की सरकार एक बार फिर से बन गई है ।नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया है और आठवीं बार सीएम पद की शपथ भी ले ली है । सरकार बदलने की इस पूरी क़वायद पर तमाम विश्लेषण हो रहे हैं पर हम आपके लिए लाए हैं – चुनावी विश्लेषक – योगेन्द्र यादव की सुपर एनालिसिस ,वो भी आपकी भाषा में ।

इस ब्लॉग में आप जानेंगे कि

भाजपा से नीतीश की इस दूरी का चुनाव पर क्या असर होगा ?
क्या 2024 का बीजेपी का सपना टूटने की तरफ़ बढ़ रहा है ?
भाजपा की राह 2024 के लिए अब और मुश्किल क्यों हो गयी है ?

इन सवालों का जवाब योगेन्द्र यादव ने तीन तर्कों के ज़रिए दिया है । हम आपको सीधे उनके तर्कों पर ले चलते हैं –

तर्क नम्बर -1 : डेटा क्या कहता है

योगेन्द्र यादव बताते हैं कि भाजपा के लिए 2024 का रास्ता कभी भी आसान नहीं होने वाला था । इसके लिए वह डेटा का सहारा लेते हैं – आप भारत के चुनावी मानचित्र को तीन स्ट्रिप्स में बाँट कर देखिए – पहला स्ट्रिप – वेस्ट बंगाल से केरल तक फैले तटीय इलाक़े में अगर आप पंजाब और कश्मीर को जोड़ दें तो इस क्षेत्र में कुल लोकसभा सीटें हैं – 190 । यह एक तथ्य है कि इस क्षेत्र में भाजपा कभी भी बड़ी ताक़त नहीं रही है । पिछली बार उसने यहाँ कुल 36 सीटें जीतीं जिसमें 18 सिर्फ़ बंगाल में थी । क्या बंगाल के विधानसभा चुनाव में हुई उसकी मंदी हालत से भाजपा उबर पाएगी । तेलंगाना में मिलने वाले सो कोल्ड मामूली लाभ को अगर उड़ीसा में कवर भी कर दें तो भाजपा यहाँ 25 पर ही सिमट जाएगी । यानी अब बचती है कुल 353 सीटें – और भाजपा को बहुमत चाहिए, तो उनको जीतनी होंगी – 353 में से 250 , क्या यह आपको आसान लगता है ।?

दूसरी बेल्ट है – हिंदी बेल्ट । बीजेपी का यहाँ दबदबा है । इस बेल्ट की 203 सीटों में बीजेपी सहयोगियों के साथ 182 सीटें जीती है ।योगेन्द्र यादव तर्क देते हैं कि अगर हम हरियाणा, हिमाचल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में एक छोटे से स्विंग की उम्मीद करें और कांग्रेस थोड़ा बेहतर प्रदर्शन करे तो बीजेपी को यहां 150 सीटों पर रोका जा सकता है ।

तीसरी बेल्ट है – कर्नाटक, महाराष्ट्र, झारखंड और बिहार की । अगर हम साथ में असम, त्रिपुरा, मेघालय और मणिपुर को शामिल कर दें तो बीजेपी को यहाँ पूर्ण बहुमत के लिए कुल 150 सीटों में से 100 सीटों की ज़रूरत पड़ेगी , लेकिन क्या सीटों की ये संख्या जुटाना इतना आसान होगा ? ज़रा हालात देखिए :

कर्नाटक में 28 में से 25 सीटों का दोहराव अब बेहद असंभव लगता है। यह आधा भी हो सकता है अगर कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) के बीच एक समझौता हो जाए ।
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार के गिरने ने, अनजाने में, 2024 में महा विकास अघाड़ी को चुनावी गठबंधन के रूप में मजबूत कर दिया है। यहाँ भी भाजपा को सीमित नुक़सान पहुँचाया जा सकता है ।
2019 में अगर हम यह मान लें कि बीजेपी असम और पहाड़ी राज्यों में भी उतना ही अच्छा प्रदर्शन कर रही है जितना पिछली बार किया था, तो अभी भी बीजेपी का फिर भी 10 सीटों का नुकसान हो रहा है ।और अगर आप सहयोगी दलों की भी गिनती करते हैं तो लगभग 25 सीटों का नुकसान होगा।

इस पूरे ऊपरी गणित से भाजपा संभवतः 2024 में 235 से अधिक सीटें नहीं जीत सकती । तब इसके प्रभुत्व के दावे को चुनौती मिलना लाज़मी हो जाता है ।

तर्क नम्बर -2 बिहार ने भाजपा के सामने बड़ी बाधा खड़ी कर दी है ।

जब आप ऊपरी आँकड़े पढ़ चुके है तो आप समझ चुके होंगे कि भाजपा को जादुई नंबर टच करने के लिए , बिहार में सभी 40 सीटों (40 में से 37) में दोबारा अपने प्रदर्शन का दोहराना होगा । लेकिन अब इसका दोहराव कठिन होने वाला है । नीतीश कुमार के बीजेपी स्विच ने इसे लगभग असंभव बना दिया है। भाजपा के लिए स्वीप की बात तो दूर, यहाँ अब रिवर्स स्वीप भी हो सकता है । आँकड़ो के अनुसार मोटे तौर पर, महागठबंधन के पास लगभग 45 प्रतिशत वोट शेयर है , जबकि एनडीए के पास यह 35 प्रतिशत से भी कम है।

तर्क नम्बर -3 : NDA में अब बचा कौन है ।

क्या एनडीए के सहयोगी इस घाटे को पूरा कर पाएंगे? खैर, NDA में अब बचा कौन है। अकाली चले गए , अन्नाद्रमुक बँट गया , शिवसेना का भारी पतन हुआ और अब जद (यू) भी NDA से बाहर हो गयी । पूर्वोत्तर में कुछ छोटी पार्टियों या उसके पूर्व सहयोगियों के कुछ टुकड़ों के अलावा अब NDA के पास कुछ भी नहीं बचा है। ये अधिकतम 10-15 सीटों का योगदान दे सकते हैं । यह बहुतमत की जादुई संख्या तक पहुँचने के लिए पर्याप्त नही होगा । मतलब बीजेपी की राह डेटा की दृष्टि से 2024 में मुश्किल नज़र आ रही है ।

( कैसा लगा आपको यह विश्लेषण हमें ज़रूर बताएँ और मशहूर कॉलमिस्ट के लेख आसान भाषा में समझने के लिए हमसे जुड़े रहें । यह हमारा नया ब्लॉग – स्पेस है ,जहाँ आप मशहूर कॉलमिस्ट के अंग्रेज़ी लेख आसान भाषा में पढ़ और समझ पायेंगे । )

Ashutosh Tiwari

अपने विषय में बताना ऐसा लगता है, जैसे स्वयं को किसी अजनबी की तरह देख रहा होऊँ । लेकिन ख़ुद को अजनबी की तरह देखना ही हमें ईमानदार बनाता है। नाम आशुतोष तिवारी है । कानपुर से हूँ। शुरुआती पढ़ाई हुई होम टाउन से। फिर पत्रकारिता से स्नातक की पढ़ाई करने दिल्ली आ गया। 2016 में IIMC में डिप्लोमा किया और आ गया IPAC । चार साल यानी 2020 तक यहीं रहा। मीडिया फ़ील्ड डेटा, PIU और लॉजिस्टिक आदि लगभग सभी गलियारों में घूमा और 2020 में चला गया हिंदी से मास्टर और JRF करने। अब फिर से 2021 में वापस आ गया हूँ। एक यूट्यूब चैनल है। हिंदी साहित्य में ख़ास रुचि है। किताबें पढ़ना, फ़िल्में देखना पसंद है।

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