भारत का मूल स्वरूप है विविधता में एकता। सैकड़ों साल की गुलामी के बाद जब देश आज़ाद हुआ तो विदेशियों ने कहा कि हिंदुस्तान में अगर लोकतंत्र स्थापित होता है तो वह मात्र एक अपवाद होगा। उनका तर्क था कि भारत में इतनी विविधता है कि यहां लोकतंत्र के बचाए रखना बड़ी चुनौती साबित होगा। लेकिन देश ने उनकी इस बात को 1947 से अबतक गलत साबित किया है।
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अगर आप युवा हैं और राजनीति से निराश हैं तो ये ब्लॉग आपके लिए है । यूथ और पॉलिटिक्स । दोनों ही कमाल के शब्द हैं और एक दूसरे के सहयोगी भी , लेकिन हैरानी की बात यह है कि दोनों का इस्तेमाल एक दूसरे के ख़िलाफ़ किया गया है । राजनीति का युवाओं के विरुद्ध । युवाओं का राजनीति के ख़िलाफ़ । कैसे ? आज युवाओं का लगता है कि राजनीति विरासती लोगों , अमीरों और अपराधियों का काम है ।
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