न पूरा रिश्ता संघ से, न सेकुलर ढंग से

लेखक ज़ैद चौधरी

असल जीवन में कभी कवि, कभी नेता की भूमिका निभाने वाले कुमार विश्वास पर किसी राजनीतिक पार्टी को इतना विश्वास न हुआ कि उनको कोई पद या जिम्मेदारी देता। एक उम्मीद थी कि शायद इस बार कांग्रेस की कश्ती में सवार होकर, वह राज्य सभा पहुंच जाएँ। लेकिन यह भी हो न सका और कुमार के साथविश्वास की कमी का इतिहास फिर दोहराया गया।

आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल कुमार विश्वास को लगा था कि अरविंद केजरीवाल के साथ की गई उनकी मेहनत रंग लाएगी| लेकिन दिल्ली का मुख्यमंत्री बनते ही अरविंद केजरीवाल ने पार्टी से जुड़े प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे लोगों को किनारे लगाना शुरू कर दिया| कुमार विश्वास ऐसे मौके पर आम आदमी पार्टी के साथ-साथ अरविंद केजरीवाल को डिफेंड करते नज़र आते थे। वैसे, पेशे से कवि कुमार विश्वास काव्य मंचों और मुशायरों में महफिल के अनुसार भाजपा और कांग्रेस दोनों पर ताना कसते रहे हैं, हालांकि उनके ताने दिलचस्प रहे हैं|

लेकिन, कई मौकों पर कुमार विश्वास को प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ करते भी देखा गया|जहां एक तरफ सुंदर शर्मा, इमरान प्रताप गढ़ी जैसे कवियों को भाजपा एवं  प्रधानमंत्री मोदी का खुले तौर पर विरोध महफ़िलों में अपने शब्दों के रूप में करते देखा गया| वहीं कुमार विश्वास खुद को शब्दों की मर्यादा में बंधे होने का हवाला देकर एक कवि के तौर पर भाजपा और कांग्रेस को कोसते रहे। जिन महाकविरामधारी सिंह ‘दिनकर’ को कुमार विश्वास अपना पुरखा बताकर सत्ता की कुर्सी को लात मारने वाले के तौरपर खुद को स्थापित करने की कोशिश करते नज़र आते हैं। कुमार विश्वास उन्हीं ‘दिनकर’ की पंक्तियों कोभूल जाते हैं. जिसमें रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने कहा था कि ‘समर शेष है नहीं पाप का भागी केवलव्याघ्र…जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध‘ दरअसल, कुमार विश्वास भी राज्यसभा पहुंच जाते, लेकिन न ठीक से सेकुलर हो पाए न संघी।

सियासी तौर पर देखा जाए तो इमरान प्रतापगढ़ी का राज्यसभा जाने का सपना कांग्रेस ने पूरा कर दिया। वहीं, अन्ना आंदोलन के जरिये अरविंद केजरीवाल केसाथ आम आदमी पार्टी को स्थापित करने वाले कुमार विश्वास सार्वजनिक तौर पर राज्यसभा जाने की इच्छा जताने के बाद भी राज्यसभा नहीं भेजे गए। बल्कि, आम आदमी पार्टी से बाहर जरूर हो गए।कवि सम्मेलनों और मुशायरों के मंचों के हिसाब से भी कुमार विश्वास हर मामले में इमरान प्रतापगढ़ी पर इक्कीस ही साबित होते हैं। आसान शब्दों में कहा जाए, तो इमरान प्रतापगढ़ी जिस दौर मंचों पर चढ़ना सीख रहे थे, इस दौर में कुमार विश्वास की कविता ‘कोई दीवाना कहता है’ लोगों के दिलो-दिमाग पर छाई हुईथी। वहीं, इमरान प्रतापगढ़ी की फिलिस्तीन और मदरसे को लेकर लिखी गई ग़ज़ल या नज़्म को पढ़ेंगे, तो साफ हो जाएगा कि उनका झुकाव पूरी तरह सेएकतरफा है।वैसे, कवि से नेता बने इमरान प्रतापगढ़ी और कुमार विश्वास के बीच एक समानता ये भी है कि दोनों ही लोकसभा चुनावों में हार का सामना कर चुके हैं। कुमारविश्वास को 2014, तो इमरान प्रतापगढ़ी को 2019 के लोकसभा चुनाव में ज़मानत तक बचाना मुश्किल हो गया था। इस स्थिति में सवाल उठना लाज़मी हैकि आखिर क्या वजह है कि कुमार विश्वास का सपना अभी तक पूरा नहीं हो सका और इमरान प्रतापगढ़ी को राज्यसभा पहुंचाने के लिए कांग्रेस ने महाराष्ट्र सेपर्चा भरवा दिया।

पिछले कुछ समय में कांग्रेस पार्टी को छोड़कर जाने वाले नेताओं की लिस्ट पर नजर डालेंगे तो काफी हद तक तस्वीर साफ हो जाएगी। हिमंत बिस्वा सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेताओं का कांग्रेस से जाना केवल इस वजह से हुआ कि वो डूबती हुई कांग्रेस पार्टी में अपनी मनचाहीजगह प्राप्त नहीं कर पाए। इन नेताओं पता था कि कांग्रेस जैसी पार्टी में उनके लिए ज्यादा संभावनाएं नहीं बची हैं। आसान शब्दों में कहा जाए तो खुद को ‘सेकुलर’ कहने वाली कांग्रेस में राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों पर पार्टी की विचारधारा से इतर विचार वालों के लिए जगह नहीं है| लेकिन लंबे समय तक आम आदमी पार्टी में रहने के बावजूद कुमार विश्वास समझ नहीं सके कि, सेकुलर विचारों के साथ राष्ट्रवादी विचारों का कॉकटेल, वर्तमान भारतीय राजनीति में “बेमेल” जोड़ी की तरह है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का आजकल का राजनीतिक अवतार सब कुछ बयान करने के लिए काफी है। केजरीवाल खुद को रामभक्त घोषित नहींकर सकते थे, तो हनुमान भक्त बन गए। यानी सीधे प्रभु श्रीराम के चरणों में न जाकर उनके परमभक्त हनुमान के सहारे ‘राम’ को साधने की कोशिश करने लगे।अरविंद केजरीवाल अब दिल्ली के स्कूलों में बच्चों को देशभक्ति का पाठ्यक्रम पढ़वा रहे हैं। आसान शब्दों में कहा जाए, तो तेजी से बदलती राजनीति कोदेखते हुए अरविंद केजरीवाल ने भी खुद को पॉलिटिकली करेक्ट बनाने की हरसंभव कोशिश की है। लेकिन कुमार विश्वास राष्ट्रवाद की भावना से गुंथा हुआअपना ‘सेकुलर’ रूप छोड़ नहीं सके।

अगर कुमार विश्वास खुद को राजनेता मानते हैं तो उनके सामने अरविंद केजरीवाल पाला बदलने के मामले में सबसे बेहतरीन उदाहरण हैं। अगर कुमार विश्वास को लगता है कि अरविंद केजरीवाल पर आरोपों की झड़ी लगाकर, कविताएँ लिखकर और रामकथा कहकर वह राज्य सभा का टिकट पा लेंगे तो यह उनकी शायद सबसे बड़ी राजनीतिक भूल होगी। देश का शायद ही कोई सियासी दल कुमार विश्वास को राज्यसभा भेजेगा। क्योंकि सिर्फ अब्दुल कलाम के बारे में अच्छी बातेंकहने से या संघ के अनुशासन की तारीफ़ करने से कोई पार्टी राज्यसभा का टिकट नहीं देती है।

The views expressed in this article are those of the author and do not represent the stand of Youth in Politics.

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