देश की पहली बूथ कैप्चरिंग, जब गुंडों ने बैलेट बॉक्स कुएं में फेंक दिए थे।

लेखक: प्रशांत शुक्ला

आज़ादी के बाद देश में पहला आम चुनाव 1951 में हुआ। यह चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुआ और नेहरू आज़ाद हिंदुस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने। दूसरा चुनाव 1957 में हुआ। यह चुनाव देश के चुनाव आयोग के लिए चुनौतियों भरा था। देश के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन की देखरेख वाला यह दूसरा और आखिरी आम चुनाव था। 24 फरवरी 1957 से 9 जून 1957 तक चला यह चुनाव कई रोचक और ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा। आज़ादी के बाद यह पहला चुनाव था जब लोगों ने जाना कि बूथ कैप्चरिंग या बूथ लूट क्या होती है, या इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर भी चुनाव जीते या हराए जा सकते हैं। इसी चुनाव में पहली बार मतदान के लिए इनोवेटिव स्याही का इस्तेमाल किया गया। इसी चुनाव में कम लागत वाले किफायती बैलेट बॉक्स का भी इस्तेमाल किया गया। इसी चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ाने और वोटर्स को जागरूक करने के लिए पहली बार सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने ‘इट इज़ योर वोट’ नाम से एक फिल्म बनाई। जिसे 13 भारतीय भाषाओं में अनुवाद करके देश भर के 74000 स्क्रीन पर फिल्माया गया। यह वह पहला चुनाव था जब देश को बूथ कैप्चरिंग जैसी चुनौती का पहली बार सामना करना पड़ा।

उपचुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी ने दर्ज की थी जीत
उस दौर में बेगूसराय में कांग्रेस पार्टी का दबदबा हुआ करता था। 1952 के चुनाव में भी कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की थी। लेकिन 1956 में कांग्रेस विधायक के निधन के बाद बेगूसराय सीट पर उपचुनाव हुआ और पहली बार यहां कम्युनिस्ट पार्टी को जीत मिली और चद्रशेखर सिंह विधायक बने। अगले ही साल 1957 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित थे। ऐसे में एक बार फिर इस सीट से कम्युनिस्ट पार्टी ने चंद्रशेखर पर दांव खेला, जबकि कांग्रेस ने सरयुग प्रसाद को मैदान में उतारा।

कांग्रेस उम्मीदवार सरयुग प्रसाद पर लगा था आरोप
बूथ कैप्चरिंग किस चिड़या का नाम है या बूथ की भी लूट हो सकती है, 10 साल पहले गुलामी से बाहर निकले हिस्दुस्तान ने 1957 के चुनाव में पहली बार देखा और समझा था। बिहार के बेगूसराय जिला मुख्यालय से लगभग 6 किलोमीटर दूर रचियाही नाम का इलाका है। अग्रेज़ों के ज़माने में यहां कचहरी हुआ करती थी। यहां पर रामदीरी से सिमरिया तक के लोगों की जमीन की रसीद कटती थी। 1957 के चुनाव में इसी रचियाही कचहरी इलाके के कछारी टोला में चुनाव आयोग ने मतदान के लिए पोलिंग बूथ बनाया गया था। यह बूथ उस दौर में बेगूसराय विधानसभा क्षेत्र में आता था लेकिन आज रचियाही मटिहानी विधानसभा का हिस्सा है। रचियाही बूथ पर चार गांवों के लोग वोट करते थे। हुआ कुछ यूं, कि वोटिंग के दिन रचियाही, मचहा, राजापुर और आकाशपुर गांव के लोग वोट करने आ रहे थे, कि अचानक लाठी-डंडों से लैस 20 से ज्यादा लोगों ने राजापुर और मचहा के गांव के मतदाताओं को रास्ते में ही मतदान केंद्र पर जाने से रोक लिया।
दूसरी तरफ मतदान केंद्र पर पहले से मौजूद कुछ गुंडों ने केंद्र लगी लाइनों से मततादाओं के भगाना शुरू कर दिया। दूसरे पक्ष के लोगों ने इस घटना का विरोध किया तो मारपीट शुरू हो गई। इसी दौरान मौके का फायदा उठाकर एक पक्ष ने पोलिंग बूथ पर जमकर फर्जी मतदान किया। कहा जाता है ये लोग कांग्रेस प्रत्याशी सरयुग प्रसाद के समर्थक थे। बवाल बढ़ा तो रचियाही के अन्य गांव वालों ने भी असमाजिक तत्वों का विरोध किया। विरोध बढ़ता देख गुंडों ने एक मतदाता पेटी पास के कुएं में फेंककर भाग निकले। उस समय तक पोलिंग बूथों पर पुलिस की व्यवस्था नहीं होती थी और न ही शिकायक का कोई ऐसा फुल प्रूफ प्लान होता था। घटना का पता देश को अगले दिन चल सका। जिसके बाद पूरे देश चर्चा शुरू हो गई, चुनावों में एक नई तरह की चुनौती की….चुनौती थी बूथ कैप्चरिंग की।

माफिया डॉन काका कामदेव ने की थी बूथ कैप्चरिंग
रचियाही के बुजुर्ग लोग आज भी वह घटना याद करते हुए बताते हैं कि कैसे कांग्रेस नेता सरयुग प्रसाद के कार्यकर्ताओं ने बूथ पर कब्जा करके मतपेटियां लूटी थीं और फर्जी वोटिंग की थी। पुराने लोग बताते हैं कि उस दौर में बेगूसराय के माफिया कामदेव सिंह और कांग्रेस उम्मीदवार सरयुग प्रसाद के अच्छे संबंध थे और बूथ लूट की यह ऐतिहासिक घटना सरयुग प्रसाद के कहने पर पहली बार कामदेव सिंह ने अंजाम दी थी। इसके बाद से बिहार और देश के कई नेताओं ने कई बार बूथ कैप्चरिंग, बलवा-बवाल को अपनी जीत का आधार बनाया। 1972 के चुनाव में मिथिला क्षेत्र से आने वाले एक पूर्व केंद्रीय मंत्री ने भी यही फॉर्म्युला अपनाया। 1970 का दशक आते-आते बिहार में चुनाव गन, गोली और गून्स का पर्याय माना जाने लगा।

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