जाति न पूछो साधू की …..

लेखिका ऋषिका अग्रवाल

जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिए ज्ञान, भारत में सियासत के लिए इस बात के कुछ मायने नहीं हैं| ऐसा लगता है कि ये ज्ञान सिर्फ और सिर्फ स्कूल की किताबों के लिए है, असल जिंदगी में सियासत ही सब कुछ है जो फिलहाल कह रही है कि सबसे पहले जाति ही पूछो और वो भी सबकी। हाल के समय में यह विषय सर्वाधिक विवाद में रहा है। जाति और आरक्षण संबंधी पुरानी बहसों की तरह ही इसमें भी स्पष्ट खांचें बने हुए हैं ।

आजकल जाति जनगणना चर्चाओं में है। इसे तकनीकी शब्दों  मे ‘सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग’ (SEBC) गणना भी  कहा जाता है। आज कल जो जातीय जनगणना की बात चल रही है उसमें सभी जातियों की गणना की बात नहीं की जा रही  है बल्कि इसमें  सिर्फ़ ओबीसी के अंतर्गत आने वाली जातियों की बात की जा रही है| आज़ादी के समय से दशकीय जनगणना (Decennial Census) में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के अंतर्गत आने वाली जातियों को गिना जाता रहा है। अन्य जातियों को सामान्य वर्ग का समझकर नहीं गिना जाता है ।  अब वक़्त के साथ यह मांग शुरू हो गयी है कि  दशकीय जनगणना में ओबीसी जातियों की  गणना भी की जाए।

इसके पूर्व 2011 में मुख्य जनगणना से अलग ‘सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना’ (SECC) के अंतर्गत जातिगत जनगणना भी की गई थी । हालाँकि इसके ऑंकड़े अभी तक जारी नहीं किये गए हैं। यह जानना ज़रूरी  है कि अब  यह मुद्दा इतना ज्वलंत क्यों होता जा रहा है और क्या वाक़ई इसकी ज़रूरत है ।

बिहार में ‘जातीय जनगणना’  का मामला  क्या है ?

बिहार में जातीय जनगणना कराने की मांग तीन साल से हो रही है । नीतीश कुमार अक्सर कहते रहे हैं कि आम जनगणना के साथ जातियों की गिनती भी हो ।वह पिछले कुछ महीनों से जातिगत जनगणना कराने की मांग लगातार  कर रहे हैं लेकिन बीजेपी इसका विरोध करती रही है| हालांकि जब नीतीश की जनता दल यूनाइटेड (JDU) और लालू यादव की पार्टी  राष्ट्रीय जनता दल (RJD) इस मुद्दे पर एक हैं  तो बीजेपी ने भी जातीय जनगणना कराने का समर्थन देने की बात कही है।

जाति आधारित जनगणना के समर्थक क्या  कहते हैं ।

हाल ही के दिनों मे कई राजनीतिक दल व सामाजिक वर्ग यह मांग उठाते रहे हैं  कि  भारत में  जाति आधारित जनगणना कराई जाये । कुछ राजनीतिक विशलेषक ऐसा मानते हैं कि   EWS आरक्षण और ओबीसी वर्ग की पहचान में राज्यों के अधिकार की माँग ने इस मामले को और  हवा दी है ।

जाति आधारित जनगणना के हिमायती इसके समर्थन में तीन तर्क दे रहे हैं ।पहला यह कि इससे सामाजिक वंचना के  शिकार वर्गों की पहचान की जा सकेगी  और उनके विकास के लिए कार्य किए जा सकेंगे । दूसरा यह कि सामाजिक न्याय और समावेशी विकास सुनिश्चित हो पायेगा | तीसरा यह कि  विभिन्न जातियों के मध्य व्याप्त विसंगतियों को दूर करना आसान होगा और राष्ट्रीय एकता भी मजबूत होगी। 

‘जाति जनगणना के विरोधी  क्या  कहते हैं ?

जाति आधारित जनगणना  के विरोधियों का मानना है कि इससे सामाजिक द्वेष पैदा  हो सकता है । कई समाजशास्त्री  यह मानते हैं कि जाति की कोई नियमनिष्ठ परिभाषा नहीं है और न ही यह लिंग, आयु, और शिक्षा की तरह किसी वस्तुनिष्ठ आधार  पर बांधी जा सकती है। तो फिर सवाल है कि व्यक्ति को जातीयता के आधार पर   गिना जाना चाहिये या आर्थिक और शैक्षणिक आधारों पर ? यह सवाल जाति आधारित जनगणना के विरोधी समय -समय पर  उठाते रहे हैं ।

जाति आधारित जनगणना के विरोधियों का एक तर्क यह भी है कि इससे जातिवाद बढ़ेगा और समाज में फूट पड़ सकती है । कुल मिलाकर सियासत से अलग इससे कानून व्यवस्था का मसला भी खड़ा हो सकता है| ।  अगर यह आँकड़े पब्लिक कर दिए जायेंगे तो इससे राजनीतिक अवसरवाद , जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा । राजनीतिक अस्थिरता उत्पन हो सकती है  और साथ ही साथ इसकी  कोई गारंटी  नहीं हैं  कि  यह आंकड़े आ जाने के बाद आरक्षण की मांग नहीं उठेगी।

आगे की राह क्या है

इस बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि  राज्य सरकार के पास जाति आधारित डाटा बहुत ही कम है ।  डाटा न होने के कारण सामाजिक नीति निर्माण मे कई दिक्कतो का सामना करना पड़ता है  कई  देशो में इन्ही  वजहों से इस तरह का सामाजिक , वर्गीय  डाटा इक्कठा किया जाता है । सवाल  यह है कि अगर भारत में यह मुमकिन भी हुआ तो  इन आंकड़ों का उपयोग किस प्रकार किया जायेगा ?

भारत की व्यवस्था लोकतान्त्रिक और उदारवादी है और यह ही बुनियाद हमें एक  समान नागरिक बनाती है ।नागरिक के रूप में चिन्हित किए जाने  का अर्थ यही है कि राज्य धर्म, जाति, संप्रदाय, लिंग, क्षेत्र आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करेगा तथा शासन का आधार ‘केवल नागरिक’ को बनाएगा। भारत में एक हर जाति  और वर्ग का एक जटिल इतिहास रहा है इसलिए भारत एक देश के तौर पर सामाजिक न्याय पर यक़ीन रखता है ।आरक्षण जैसी कई तरह की सामाजिक कार्रवाइयाँ यहाँ प्रेक्टिस में है । जाति जनगणना का मामला भी जटिल है और आपने ऊपर पढ़ा कि इस मामले  के विरोध और समर्थन में तमाम तर्क दोनो तरफ़ से मौजूद हैं । उम्मीद है कि सरकारें  जनगणना के मामले में इस तरह से फ़ैसला लेंगी जिससे सामाजिक द्वेष  भी न उत्पन हो न हो और  बीच का रास्ता निकाला जा सके ।

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