गुलाम नबी हुए “आज़ाद”

लेखक ज़ैद चौधरी

ये किस्सा वही है जो दोहराया गया है। चिट्ठी नयी है पर मज़मून पुराना। G-23 की चिट्ठी में भी गुलाम नबी आज़ाद और कांग्रेस के बागी साथियों के निशाने पर राहुल गांधी ही थे, अब भी उनके के निशाने पर पर राहुल गांधी ही हैं। फर्क बस इतना है कि इस बार नाम खुल कर लिया जा रहा है। 

सोनिया गांधी को लिखी पहली चिट्ठी में गुलाम नबी आज़ाद ने लिखा था कि  पार्टी को “ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो काम करता हुआ नज़र भी आये!” । यह राहुल गांधी की ओर ही एक इशारा था। 

इस पर संदेह नहीं कि ये टिप्पणी राहुल गांधी की राजनीति के प्रति उनके गंभीर न होने के रवैये को लेकर की गयी थी। राहुल गांधी  कभी भी छुट्टी पर चले जाते हैं , कितना भी बड़ा इवेंट क्यों न हो, बीच में ही छोड़ कर गायब हो जाते हैं,  ऐसी ही कुछ बातों की वजह से पार्टी के लोग हमेशा ही समय- समय पर उनके प्रति अपना विरोध प्रकट कर चुके हैं । विरोधी भी राहुल गाँधी पर इन्ही  कारणों को लेकर निशाना साधते  रहे हैं हालांकि राहुल गाँधी खुद ये बात साफ कर चुके हैं कि न तो सत्ता में उनकी दिलचस्पी है, न ही राजनीति में। 

नतीजे के काफी करीब पहुंच चुकी कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया अचानक कुछ दिनों के लिए टाल दिये जाने के पीछे राहुल गाँधी की अध्यक्ष न  बनने की इच्छा मानी जा रही है । माना जा रहा है कि इस  प्रक्रिया  को  इसलिए भी टाला गया है कि  राहुल गांधी शायद कमान संभालने के लिए राज़ी हो जायें।

गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस के अन्य बागी साथी  पार्टी  के लिए एक स्थायी अध्यक्ष चाहते थे जहां जरूरी मसलों की सुनवाई हो सके और जो ज़रुरत के हिसाब से वक्त रहते फैसले लिए जा  सकें । 

कपिल सिब्बल और उनके पहले कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की निराशा तो समझ में आती है । जब उनको लगा कि कांग्रेस में न तो उनकी कोई कद्र है, न ही  कांग्रेस के भले के लिए जो कुछ वो सोचते हैं , उसको अहमियत मिलने वाली है – जब उम्मीद की कोई किरण कहीं नज़र नहीं आयी तो उन सभी ने  किनारा कर लिया। 

लेकिन गुलाम नबी आज़ाद तो सामने देख रहे थे कि कांग्रेस के लिए स्थायी अध्यक्ष के लिए चुनाव प्रक्रिया समय पर खत्म करने का प्रयास चल रहा है। अब तो ये भी लगता है कि कांग्रेस को गुलाम नबी आज़ाद के कदम की किसी तरह भनक लग गयी थी और इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया शुभ मुहूर्त के नाम पर कुछ दिन के लिए टाल दी गयी है।

सवाल ये है कि, क्या गुलाम नबी आज़ाद कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के नाम पर चल रही कवायद से इत्तेफाक नहीं रख पा रहे थे? ये सवाल इसलिए भी है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को गुलाम नबी आज़ाद ने कठपुतली की तलाश करार दिया है। कहीं गुलाम नबी आज़ाद के मन में खुद कांग्रेस अध्यक्ष बनने की कोई ख्वाहिश तो नहीं थी?

ख़ैर वजह चाहे जो भी हो, पर सत्य यही है कि  कांग्रेस की नैया को डूबता देख हर कोई अपना – अपना रास्ता पकड़ कही और निकलने की  फ़िराक में है। 

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